कवर्धा:- 12 वर्षों से लगातार तप कर रही माता भुनेश्वरी इन दिनों छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में वैष्णो धाम मंदिर निर्माण को लेकर चर्चा में हैं। माता भुनेश्वरी, जो स्वयं को देवी शक्ति का माध्यम मानती हैं, ने अपने जीवन को तप, सेवा और भक्ति को समर्पित कर दिया है। उनका कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में किसी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधा को स्वीकार नहीं किया, बल्कि हजारों साधु-संतों और श्रद्धालुओं के लिए एक भव्य मंदिर बनाने का संकल्प लिया है।
माता का निवास कवर्धा में है, जहाँ से वे वर्षों से देवी उपासना कर रही हैं। उनका कहना है कि उन्होंने न तो कभी परिवार की इच्छा की और न ही समाज से कोई अपेक्षा की। उनका समर्पण सिर्फ देवी मां के चरणों में है और उद्देश्य एक ही – वैष्णो धाम जैसा मंदिर कवर्धा में बने, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भक्ति और सेवा का केन्द्र मिल सके।
मंदिर निर्माण में आ रही अड़चनें
माता ने दुख प्रकट करते हुए कहा कि कवर्धा के कुछ स्थानीय लोगों द्वारा मंदिर निर्माण में अड़चनें डाली जा रही हैं। न तो स्थान दिया जा रहा है, और न ही सहयोग। माता ने बताया कि सावन महीने में देशभर से साधु-संत कवर्धा आने वाले हैं, पर यहां इतनी कम जगह है कि उन्हें ठहराना भी कठिन हो जाएगा।
उनका यह भी कहना है कि वे भक्तों से मिले दान को अब भोरमदेव मंदिर में समर्पित करने पर विचार कर रही हैं। यदि चार महीने में कोई समाधान नहीं निकलता, तो वे और उनका तपस्थल कवर्धा छोड़ वैष्णो धाम चले जाएंगे।
“हमारे पास कुछ नहीं, लेकिन आशीर्वाद में शक्ति है”
माता ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जिन लोगों ने उन्हें सहयोग किया, उनका जीवन समृद्ध हुआ, और जिन्होंने उनका अपमान किया, उन्हें कभी शांति नहीं मिली। उन्होंने कहा, “हमारे पास कुछ नहीं है, लेकिन हमारी आंखों से गिरे आंसुओं में मां की शक्ति है। जो साथ देता है, वह राजा बन जाता है।”
बालोद नहीं, कबीरधाम है मायका
माता ने यह भी स्पष्ट किया कि बालोद उनका मायका नहीं, बल्कि कबीरधाम ही उनका मायका है, क्योंकि यहां भोरमदेव महाराज और शिव-शक्ति का वास है। उन्होंने कहा कि एक समय मजगांव की एक वृद्ध महिला ने उन्हें बिना किसी स्वार्थ के पांच वर्षों तक अपने घर में रखा। उस परिवार ने भी तपस्या के समय उन्हें साथ दिया, जिसकी वे आज भी ऋणी हैं।
भविष्य में संतों का मेला, लेकिन अनिश्चितता बरकरार
भुनेश्वरी माता ने बताया कि सावन माह में देशभर के साधु-संतों का मेला लगने वाला है। पर यदि कवर्धा में मंदिर निर्माण नहीं होता और सम्मानजनक स्थान नहीं मिलता, तो वे अपने संकल्प को कबीरधाम के बाहर ले जाने को मजबूर होंगी।
माता ने अंत में यह भी कहा, “जो अपमान करता है, उसका राजपाट छिन जाता है, और जो सम्मान करता है, उसे मेरी मां राजा बना देती है। कवर्धा की मिट्टी में तप किया है, लेकिन यदि यही संघर्ष रहा तो हमें वह धरती छोड़नी होगी।”