रायपुर:-छत्तीसगढ़ी भाषा और हास्य कविता के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान देने वाले सुप्रसिद्ध कवि, लेखक और मंचीय कलाकार पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे का आज निधन हो गया। उन्होंने रायपुर स्थित ACI अस्पताल में अंतिम सांस ली। जानकारी के अनुसार, उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया।
डॉ. सुरेन्द्र दुबे छत्तीसगढ़ी और हिंदी साहित्य जगत की एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने हास्य को गंभीरता से लिया और अपने लेखन व प्रस्तुति से जनमानस को गुदगुदाते हुए भी सोचने पर मजबूर किया।
जन्म एवं प्रारंभिक जीवन:
डॉ. दुबे का जन्म 8 अगस्त 1953 को दुर्ग जिले के बेमेतरा में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में डिग्री प्राप्त की, लेकिन उनका रुझान साहित्य और विशेष रूप से हास्य कविता की ओर रहा। उन्होंने अपने जीवन में हास्य को केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने का जरिया माना।
साहित्यिक योगदान:
डॉ. सुरेन्द्र दुबे ने पांच पुस्तकें लिखीं, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक पहलुओं पर कटाक्ष होता था। उनकी कविताएं आमजन की भाषा में होते हुए भी उच्च विचार प्रस्तुत करती थीं।
उनकी लोकप्रियता सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रही। वे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलनों का हिस्सा रहे, जहाँ उन्होंने अपनी हास्य कविताओं से लोगों को खूब हँसाया और सोचने पर मजबूर किया।
टेलीविजन और मंचीय प्रस्तुतियाँ:
वे दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों पर प्रसारित हास्य कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय चेहरा रहे। उनकी शैली, व्यंग्य और संवादों में गजब की पकड़ थी, जिससे वे दर्शकों के दिल में उतर जाते थे।
राष्ट्रीय सम्मान:
उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2010 में उन्हें ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से अलंकृत किया। यह न केवल उनके लिए, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत के लिए भी एक गौरव का क्षण था।
शोक की लहर:
उनके निधन की खबर से साहित्यिक, सांस्कृतिक और कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। छत्तीसगढ़ सरकार सहित देशभर के साहित्यप्रेमियों, कवियों और लेखकों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, और कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने सोशल मीडिया पर उन्हें याद करते हुए कहा कि “डॉ. सुरेन्द्र दुबे का निधन हास्य साहित्य की अपूरणीय क्षति है।”
डॉ. सुरेन्द्र दुबे नहीं रहे, लेकिन उनकी कविताएं, उनका हास्य और उनका अंदाज़ हमेशा छत्तीसगढ़ और देशवासियों के दिलों में जीवित रहेगा।
ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दे।