कबीरधाम (छत्तीसगढ़)। :- साल 2012 में जब भुवनेश्वरी माता, उनकी मां और पति संतोष जी ने एक ही वस्त्र में तप यात्रा आरंभ की थी, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह यात्रा 14 वर्षों तक चलेगी और कई राज्यों की धरती तप की गवाही बनेगी। आज इस आध्यात्मिक यात्रा को 13 वर्ष बीत चुके हैं, और अब यह अंतिम पड़ाव पर है—लेकिन मंदिर निर्माण का स्वप्न अब भी अधूरा है।
भुवनेश्वरी माता, जो अब 8 वर्षों से कबीरधाम जिले में निवास कर रही हैं, वर्षों से एक मंदिर निर्माण का संकल्प लेकर साधना और सेवा में जुटी हैं। उनकी माता का सपना था कि जनकल्याण और सनातन धर्म के प्रचार हेतु एक दिव्य दरबार स्थापित हो, जहाँ श्रद्धालु अपनी पीड़ा कह सकें और दिव्यता का अनुभव करें। दुर्भाग्यवश उनकी माता की आकस्मिक मृत्यु बनारस (काशी धाम) में हो गई, और तब से भुवनेश्वरी माता इस संकल्प को साकार करने हेतु भटक रही हैं।
मंदिर निर्माण का संकल्प
भुवनेश्वरी माता बताती हैं, “मैंने कभी किसी से एक रुपये तक नहीं लिया, खुद मजदूरी की, जंगल-जंगल तप किया, ताकि मां के स्वप्न को साकार कर सकूं। मेरा सपना है कि कबीरधाम में शिवजी की दिव्य प्रतिमा के साथ एक मंदिर बने, जहां सनातन धर्म का प्रचार हो और जनकल्याण हो।”
उनके पति संतोष जी, जिन्हें वे अपने ‘भगवान’ तुल्य मानती हैं, लगातार साथ में साधना और सेवा में लगे हैं। उन्होंने कहा, “हम दोनों पति-पत्नी सनातन धर्म के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुके हैं। मैं अपनी पत्नी को माता वैष्णवी का रूप मानता हूं। यह मंदिर सिर्फ एक संरचना नहीं, यह साधना, समर्पण और त्याग की साक्षात मूर्ति होगा।”
सरकारी मदद की प्रतीक्षा
हालांकि मंदिर निर्माण के लिए भूमि की आवश्यकता है, जिसे लेकर अब तक सरकार या स्थानीय प्रशासन से कोई ठोस सहयोग नहीं मिल पाया है। भुवनेश्वरी माता ने जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से अपील की है कि यदि धर्म, संस्कृति और सेवा के इस कार्य में सहयोग मिले, तो यह न केवल उनके संकल्प की पूर्ति होगी बल्कि जिले के लिए भी एक धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर बन सकेगा।
जन सहयोग की आवश्यकता
माता का कहना है, “यदि कबीरधाम वासियों का साथ मिले, तो यह सपना जल्द साकार हो सकता है। यह केवल मेरा नहीं, मेरी मां की आत्मा की शांति, मेरे पति की साधना और जन कल्याण की तपस्या है।”
अब सिर्फ एक वर्ष शेष
रामजी ने 14 वर्षों का वनवास किया था, ठीक उसी तरह अब भुवनेश्वरी माता के तप का एक वर्ष और शेष है। सवाल यह है कि क्या यह अंतिम वर्ष उनके सपने को साकार कर पाएगा? क्या कबीरधाम की जनता, शासन और समाज इस तपस्या का मोल समझेगा?
यदि आप इस प्रयास से भावनात्मक या धार्मिक रूप से जुड़ते हैं, तो आप भी इस कार्य में भूमि, निर्माण सामग्री या श्रमदान के रूप में सहयोग कर सकते हैं। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, एक युग की साधना की परिणति होगी।